Sholay की 101 बेमिसाल किस्से – Why is Sholay so Popular ?
बॉलीवुड की हिट फ़िल्मों में से एक Sholayने सफलता के कई रिकॉर्ड बनाये हैं। शायद ही कोई ऐसी फिल्म होगी जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इतनी सराहना मिली हो। शोले से जुडी कई रोचक बातें हैं, जिनका जिक्र अक्सर फिल्म के आर्टिस्ट इंटरव्यूज में करते रहते हैं। इस पोस्ट में फिल्म से जुड़े कुछ ऐसे ही रोचक किस्सों के बारे में जानेंगे।
रशियन रूले यानी मौत का जुआं – Russian roulette
1.फिल्म में गब्बर अपने आदमियों को मारते समय एक गेम खेलता है और रिवाल्वर को सबके सिर पर रखकर गोली चलाता है। इसे Russian roulette रशियन रूले कहा जाता है। यह गेम एक जुएं की तरह होता है। इस गेम में प्लेयर्स अपने आप को बारी बारी से गोली मारते हैं और अपनी किस्मत आजमाते हैं।
शोले एक रिजेक्टेड आईडिया – Sholay Rejected Idea
2.फिल्म के लेखक Salim – Jawed शोले के आईडिया को प्रोयूसर्स को सुना रहे थे, लेकिन कोई भी इस फिल्म को बनाने के लिए तैयार नहीं था। इस आईडिया को दो बड़े फिल्म मेकर्स मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा रिजेक्ट कर चुके थे। इसके बाद सलीम – जावेद ने जीपी सिप्पी उनके बेटे रमेश सिप्पी को कहानी सुनाई और वे दोनों इस पर फिल्म बनाने के लिए तैयार हो गए।
ठाकुर बलदेव सिंह आर्मी ऑफिसर – Thakur of Sholay
3.पहले यह तय किया गया था शोले के ठाकुर बलदेव सिंह एक आर्मी अफसर होंगे और वे 2 आर्मी के जवानों जय और वीरू को गब्बर को पकड़ने के लिए लेकर आएंगे, लेकिन बाद रमेश सिप्पी को लगा कि इससे फिल्म को आवश्यक अनुमतियाँ मिलने में समस्या आ सकती है। इसी के साथ फिल्म की स्क्रिप्ट में बदलाव करते हुए ठाकुर बलदेव सिंह को पुलिस अफसर बताना तय किया गया।
उर्दू में स्क्रिप्ट
4.लेखक सलीम – जावेद ने फिल्म की स्क्रिप्ट और डायलॉग उर्दू में लिखी थी, जिन्हे बाद में हिंदी में ट्रांसलेट किया गया ताकि सभी कलाकार इसे पढ़ सकें।
गब्बर नाक और कान काट लेने वाला डाकू – Is Gabbar Singh a real Character ?
5.फिल्म के विलेन का नाम गब्बर रखने का आईडिया सलीम खान ने एक रियल डाकू के नाम पर रखा था। 1950 के दशक में ग्वालियर के पास एक डाकू हुआ करता था, जिसका नाम गब्बर था। यह डाकू पुलिस वालों को किडनैप करके उनके नाक और कान काट लिया करता था। इस डाकू की कहानी सलीम साहब ने अपने पिताजी जो कि एक पुलिस अधिकारी थे, से सुनी थी।
कौन थे असली में जय और वीरू – Jay and Veeru
6.फिल्म के प्रमुख किरदारों का नाम जय -वीरू सलीम ने अपने पुराने साथियों के नाम पर रखा था। जय और वीरू सलीम खान के दोस्त थे और कॉलेज में साथ पढ़ा करते थे।
किसके नाम पर ठाकुर का नाम बलदेव सिंह रखा
7.सलमान खान के नाना यानि सलीम खान के ससुर जी का नाम बलदेव सिंह था। सलीम इस नाम से इतने इम्प्रेस थे कि उन्होंने ठाकुर का नाम अपने ससुर के नाम पर रख दिया।
असली सूरमा भोपाली कौन था – Soorma Bhopali in Sholay
8.शोले का सूरमा भोपाली कैरेक्टर भोपाल के एक वन अधिकारी से प्रभावित था। इनका नाम सूरमा था। कुछ रिपोर्ट्स में ऐसा कहा गया है, कि असली सूरमा ने कई बार गुस्से में मीडिया को धमकी दी, क्यूंकि वे लोगों द्वारा उन्हें लकड़हारा (Wood Cutter ) कह कर चिढ़ाने से नाराज थे।
9.फिल्म के किरदार सूरमा भोपाली की सफलता को भुनाने के लिए जगदीप ने 1988 में एक फिल्म सूरमा भोपाली का निर्माण किया। फिल्म में धर्मेंद्र भी एक छोटे से रोल में गेस्ट अपीयरेंस में दिखे, लेकिन फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ कमाल नहीं दिखा सकी।
अंग्रेजों के जमाने का जेलर – Angrejo ke Jamane ka Jailer
10.शोले के अंग्रेज़ों के जमाने के जेलर यानि असरानी को अडोल्फ हिटलर और चार्ली चैपलिन के हावभाव को मिक्स करके दिखाने का आईडिया जावेद अख्तर का था। उन्होंने असरानी को अडोल्फ हिटलर पर लिखी एक बुक लाकर दी, जिसमे हिटलर की द्वितीय विश्वयुद्ध की कई तस्वीरें थी। इन्हीं तस्वीरों के देखकर असरानी ने अपने कैरेक्टर को बड़े ही अच्छे ढंग से निभाया।
ऐसे बने अमजद खान शोले के गब्बर – Amjad Khan as Gabbar in Sholay
डैन्नी थे पहली पसंद
11.फिल्म में गब्बर के रोल के लिए पहली पसंद डैनी डेंजोगप्पा थे। लेकिन उन्होंने इस फिल्म के लिए इंकार कर दिया, क्योंकि वे उस समय फ़िरोज़ खान की फिल्म धर्मात्मा की शूटिंग में व्यस्त थे। इसके बाद फिल्म के लिए अमजद खान को चुना गया।
अमजद खान से जावेद की मुलाकात
12.सलीम जावेद एक इंटरव्यू में बताते हैं कि जावेद अख्तर को 1963 में दिल्ली यूथ फेस्टिवल के दौरान एक नाटक देखने का मौका मिला, जिसमे अमजद खान ने भी काम किया था। अमजद खान की एक्टिंग जावेद को भा गई और और उन्होंने मुंबई आ कर इसका जिक्र सलीम खान से किया। 10 साल बाद शोले के निर्माण के समय सलीम ने जावेद को अमजद खान के बारे में याद दिलाया और यहीं से अमजद को फिल्म के ऑडिशन का बुलावा भेज दिया गया।
अमजद खान का प्लेन हुआ खराब
13.अमजद खान को जब ऑडिशन के लिए बंगलौर बुलाया गया तो उनकी फ्लाइट में कुछ खराबी आ गई और मुंबई हवाई अड्डे पर प्लेन 5 घंटे खड़ा रहा। अधिकतर यात्री प्लेन से उतर गए, लेकिन अमजद नहीं उतरे और उसी प्लेन के ठीक होने के बाद बंगलौर पहुंचे। उन्हें डर था कि कहीं यह रोल उनके लेट होने के कारण डैनी को न दे दिया जाये।
14.गब्बर की किरदार को अमजद खान ने अपने अंदर उतारने के लिए शूटिंग के दौरान एक किताब “अभिशप्त चम्बल” पढ़ डाली। चम्बल के डाकुओं के ऊपर लिखी इस किताब के लेखक जया बच्चन के पिता थे और जया ने ही अमजद की मदद करने के लिए यह किताब उन्हें दी थी।
15.फिल्म के ठाकुर यानि Sanjeev Kumar गब्बर का रोल करने चाहते थे, लेकिन सलीम जावेद नहीं चाहते थे कि वे ये रोल करें। दोनों जानते थे कि सीता और गीता निभाए गए किरदार के बाद संजीव कुमार को दर्शक विलेन के रोल में देखना पसंद नहीं करेंगे।
कैसे बने अमिताभ शोले के जय – Amitabh Bachchan as Jay in Sholay
शत्रुघन सिन्हा थे जय के रोल के लिए सिप्पी की पसंद
16.सिप्पी शत्रुघन सिन्हा को जय का रोल ऑफर करना चाहते थे। इधर अमिताभ भी यह रोल करना चाहते थे। ऐसे में कई ऐसे फैक्टर्स बन गए जिनसे यह रोल अमिताभ को मिल गया।
सलीम जावेद को मनाया
17.अमिताभ के जंजीर में किये काम से बहुत प्रभावित थे और अमिताभ ने भी उन्हें कन्वेन्स कर लिया था कि वह रोल उन्हें ही मिलना चाहिए। सलीम जावेद ने रमेश सिप्पी से इस बारे में बात की और अंत में सिप्पी मान गए।
धर्मेंद्र ने की सिफारिश
18.इसके साथ ही अमिताभ फिल्म के दूसरे अभिनेता Dharmendra के घर पहुंच गए और उनसे भी अपनी सिफारिश रमेश सिप्पी से करने के लिए कहा। धर्मेंद्र ने भी सिप्पी से इस बारे में बात की और सिप्पी अमिताभ को जय का रोल देने के लिए मान गए।
ठाकुर के रोल की कास्टिंग
19.ठाकुर के रोल के लिए प्राण (Pran)का नाम भी लिस्ट में था, लेकिन रमेश सिप्पी (Ramesh Sippi) का मानना था कि संजीव कुमार इस रोल को बहुत अच्छे से कर सकते हैं।
20.सलीम जावेद ठाकुर के रोल के लिए दिलीप कुमार (Dilip Kumar) के पास भी गए थे, लेकिन उन्होंने इस फिल्म में काम करने से मना कर दिया। बाद में उन्होंने एक इंटरव्यू में इस बात का जिक्र किया था कि शोले इन चंद फिल्मों में से एक है जिसे ठुकराने का उन्हें हमेशा अफ़सोस रहेगा।
धर्मेद्र के वीरू बनने की कहानी – Dharmendra as Veeru in Sholay
धर्मेंद को वीरू के रोल के लिए हेमा मालिनी का नाम लेकर मनाया
21.धर्मेंद्र ठाकुर वाला रोल निभाना चाहते थे। रमेश सिप्पी ने उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं मान रहे थे। इस समय तक Hema Malini और Dharmendra के रोमांस की खबरे फ़िल्मी मैगज़ीन्स में आना शुरू हो चुकी थी। सिप्पी ने उन्हें समझाया कि अगर वे वीरू वाला रोल करते हैं तो हेमा मालिनी के साथ वक्त गुजारने का मौका मिलेगा। साथ ही यह भी कहा कि अगर वे नहीं माने तो यह रोल संजीव कुमार को मिल जायेगा। धर्मेंद जानते थे कि संजीव कुमार भी हेमा मालिनी को पसंद करते हैं, ऐसे में उनकी जिद उनके लिए नुक्सान का कारण बन सकती है।
धर्मेंद्र और हेमा के सीन क्यों होते थे रीशूट
22.वीरू और बसंती के रोमांटिक सीन्स की शूटिंग के टाइम धर्मेंद्र लाइट सँभालने वाले लड़को को जानबूझ कर कुछ गड़बड़ करने के लिए कहते थे, ताकि सीन को दोबारा से शूट करने पड़े और वे हेमा मालिनी के साथ फिर से कुछ वक्त गुजार सके। ऐसा कहा जाता है कि इसके लिए धर्मेंद्र हर बार गड़बड़ करने पर लाइट बॉयज को 100 रूपये देते थे। कुछ लोग तो दिन के 2 – 2 हजार रु तक ले जाते थे।
अमिताभ और जया बच्चन – Amitabh and Jaya Bachchan
23.फिल्म की शूटिंग के दौरान जया प्रेगनेंट थी। जब वीरू तिजोरी की चाबी देने ठाकुर की बहु के पास जाता है, तब ठाकुर की बहू का रोल निभाने वाली जया बच्चन प्रेगनेंट थी। इस सीन की शूटिंग के कुछ दिनों बाद श्वेता बच्चन का जन्म हुआ। जब फिल्म रिलीज़ हुई तब भी जया बच्चन प्रेगनेट थी और रिलीज़ के 6 महीने बाद अभिषेक बच्चन का जन्म हुआ।
शोले का ओवर बजट होना – Sholay Overbudget
फिल्म की लागत पूर्व निर्धारित बजट से बहुत ज्यादा हो गई थी। फिल्म के लिए निर्धारित बजट लगभग 1.5 करोड़ रखा गया था, लेकिन पूरी बनते बनते यह लागत लगभग 3 करोड़ तक पहुँच गई। ऐसे बहुत से कारण थे, जो इसके जिम्मेदार थे।
24.फिल्म को बनाने में लगभग 2.5 वर्ष का समय लग गया।
25.फिल्म के बहुत हिस्सों को रीशूट करना पड़ा। कई बार ऐसा हुआ की रमेश सिप्पी किसी सीन से संतुष्ट नहीं होते थे और उस सीन को रीशूट करना पड़ता था।
26.पांच मिनट के गाने ” ये दोस्ती हम नहीं ” को शूट करने में 21 दिन का टाइम लग गया था।
27.फिल्म का एक सीन जिसमे अमिताभ माउथ ऑर्गन बजाते हैं और जया बच्चन लालटेन जलाती नजर आती हैं, 21 दिन में शूट हो पाया था, क्योंकि शूटिंग के लिए आवश्यक सनलाइट उपलब्ध नहीं हो पा रही थी और सीन सिप्पी की उम्मीदों के अनुसार शूट नहीं हो पा रहा था।
28.इमाम के बेटे को मार देने वाला सीन शूट होने में 19 दिन लगे थे।
29.ट्रैन डकैती वाला सीन शूट होने में लगभग 7 सप्ताह का समय लग गया था। यह सीन बॉम्बे पूना ट्रैन रूट पर पनवेल के पास शूट किया गया था।
30.शोले भारत की पहली 70 MM फिल्म थी। इसके पहले फिल्मे 35 MM पर फिल्माई जाती थी। फिल्म के लिए 70 MM की रील विदेशों से मंगवाई जा रही थी, जिसमे बहुत सारा वक्त लग रहा था।
फिल्म से हटाए गए या बदले गए शॉट्स – Removed Scenes from Sholay
शोले के बहुत से दृश्यों को या तो फिल्म से हटा देना पड़ा या फिर उनमे बदलाव करने पड़े। ऐसा रमेश सिप्पी को सेंसर बोर्ड के दबाव में करना पड़ा। ऐसे कुछ दृश्य जिनमे बदलाव का काँट छांट करनी पड़ी, वे इस प्रकार हैं –
31.सूरमा भोपाली पर एक कव्वाली भी शूट की गई थी। इसके लिए भोपाल से चार कलाकार बुलाये गए थे। कव्वाली को किशोर कुमार, मन्ना डे, भूपिंदर और आनंद बक्शी ने गाया था, लेकिन फिल्म की लम्बाई अधिक हो जाने के कारण इस फिल्म से काट देना पड़ा।
32.शोले के अंत में पुलिस आकर गब्बर को गिरफ्तार कर लेती है, लेकिन असल में ठाकुर गब्बर को मार देता है। सेंसर बोर्ड ने इस दृश्य के साथ फिल्म के रिलीज़ करने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि इससे समाज में गलत सन्देश जा सकता था और हो सकता था कि लोग इस तरह के मामलों में क़ानून अपने हाथ में लेकर दोषियों को सजा देने लगे। रमेश सिप्पी ने फिल्म का अंत बदलकर गब्बर की गिरफ़्तारी वाला दृश्य फिर से शूट किया।
33.इमाम के बेटे की हत्या वाला सीन भी सेंसर बोर्ड ने फिल्म से कटवा दिया। फिल्म में उसे बहुत बर्बर तरीके से मारते हुए दिखाया था।
34.ठाकुर के परिवार की हत्या वाला सीन भी सिप्पी ने फिल्माया था, लेकिन सेंसर बोर्ड ने इस सीन को भी फिल्म से हटवा दिया।
35.फिल्म का एक सीन था, जिसमे जय और वीरू एक होटल में खाना खाते हैं और इसके बाद एक पारसी को बेवकूफ बना कर उसकी मोटरसाइकिल ले कर भाग जाते हैं। फिल्म की लम्बाई अधिक हो जाने के कारण उस सीन को भी काटना पड़ा और फिल्म में पारसी को मोटरसाइकिल के पीछे सिर्फ भागता दिखाया गया। इस कलाकार का नाम मुश्ताक़ मर्चेंट था। मुश्ताक़ मर्चेंट को फिल्म में दो किरदार निभाने थे। पहला ट्रैन डकैती के समय ट्रैन के ड्राइवर का दूसरा मोटरसाइकिल के पारसी मालिक का। लेकिन वे फिल्म से सिर्फ ट्रैन ड्राइवर के रूप में ही नजर आ सके।
शोले का फ्लॉप होने से लेकर हिट होने तक का सफर – Was Sholay a Flop ?
कुछ लोगों का मानना था कि यह फिल्म फ्लॉप साबित होगी। अभी तक डाकुओं की फिल्मों को मध्यप्रदेश के मुरैना या राजस्थान में चम्बल के धोरों में शूट किया जाता था। लेकिन इस फिल्म के मेकर्स फिल्म को ऐसी जगह शूट कर रहे थे, जो डाकुओं की शरणस्थली नहीं होती।
36.फिल्म 15 अगस्त 1975 को शुक्रवार के दिन रिलीज़ हुए। शुक्रवार और शनिवार के नतीजे देखकर फ़िल्मी पंडितों ने इसे फ्लॉप करार दे दिया। यहाँ तक कि अगले दिन सलीम -जावेद, रमेश सिप्पी और अमिताभ ने मन बना लिया कि फिल्म के अंत में जय के मरने वाले सीन को रीशूट करके उसे ज़िंदा दिखाया जायेगा और फिल्म को अपडेटेड प्रिंट्स के साथ फिर से रिलीज़ कर दिया जायेगा, लेकिन सोमवार तक पूरी हवा बदल गई। फिल्म देखने के लिए भारी भीड़ जमा होने लगी और उसके बात जो भी हुआ वो इतिहास बन गया ।
37.जल्दी ही शोले ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और 100 थिएटर्स में इसने सिल्वर जुबली यानि 25 सप्ताह पूरे कर लिए।
38.अगला रिकॉर्ड भी शोले के नाम ही रहा जब इसने 60 थिएटर्स में 50 सप्ताह पूरे करके गोल्डन जुबली मनाई।
39.यह फिल्म मुंबई के मिनर्वा थियेटर में 5 से भी ज्यादा सालों तक लगातार चलती रही।
40.शोले को भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी रिलीज़ किया गया और फिल्म ने वहाँ भी भरपूर कमाई की। फिल्म को सोवियत यूनियन में 1979 में रिलीज़ किया गया था।
41.1988 में शोले को चाइना में भी रिलीज़ किया गया।
42.पूरे भारत में शोले के करीब 10 करोड़ से टिकट्स बेचे गए थे।
43.सोवियन रूस में शोले के करीब 4 करोड़ टिकट्स बेचे गए।
44.शोले 1993 तक भारत की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी। इसके बाद इस रिकॉर्ड को हम आपके हैं कौन ने तोडा।
45.ओरिजिनल रिलीज़ के 40 साल बाद 2015 में शोले पाकिस्तान में भी रिलीज़ हुई।
46.फिल्म प्रीमियर पकिस्तान के कराची में किया गया।
47.एक बड़े मीडिया हाउस की रिपोर्ट्स के अनुसार करीब 25 करोड़ लोगों ने इस फिल्म को अब तक थिएटर में जा कर देखा है।
48.इतनी बड़ी हिट फिल्म होने के बावजूद भी शोले को केवल एक फिल्मफेयर अवार्ड मिला। यह अवार्ड फिल्म के एडिटर एम एस शिंदे को बेस्ट एडिटिंग के लिए मिला।
49.इसके अलावा Bengal Film Journalists Association Awards ने अमजद खान को गब्बर के रोल के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवार्ड दिया।
50.पचासवें फिल्मफेयर अवार्ड्स में गलती सुधारते हुए इस फिल्म को एक स्पेशल कैटेगरी के तहत ” Best Film of 50 Years” का अवार्ड दिया गया।
शोले पर लिखी गई किताब – Book on Sholay
51.वर्ष 2000 में लिखी गई किताब “The Making of a Classic” में शेखर कपूर ने कहा कि भारतीय फिल्म इतिहास को शोले ने दो हिस्सों में बाँट दिया है। Sholay AD and Sholay BC (शोले के पहले और शोले के बाद )
52.यह बुक इतनी फेमस हुई कि जल्दी ही इसकी 10,000 कॉपियां बिक गई।
53.वर्ष 2001 में इस बुक को National Film Award for Best Book on Cinema मिला।
54.’ब्रिटिश फिल्म इंस्टिट्यूट’ ने 2002 में शोले को Top 10 Indian Films में रैंक किया था।
शोले का रामगढ उर्फ़ सिप्पी नगर – Ramgarh of Sholay
55.फिल्म की शूटिंग का अधिकांश हिस्सा बंगलौर के पास रामनगर में शूट किया गया। यह इलाका पथरीली चट्टानों से घिरा हुआ था और फिल्म के निर्देशक रमेश सिप्पी को शोले की शूटिंग के लिए बेहद पसंद आया।
56.रामनगर में शूटिंग के दौरान यूनिट के लोगों के खाना बनाने के लिए किचन सेटअप किया गया था, जहां करीब 1000 लोगों का खाना रोज बनता था।
57.फिल्म में गब्बर का अड्डा और ठाकुर के घर के बीच में मीलों का फासला बताया गया था, लेकिन असल में जगह आसपास थी।
58.रमेश सिप्पी ने उस जगह पर सचमुच के गाँव जैसा सेट लगा दिया था और सेट तक जाने के लिए पक्की सड़क बनवा दी थी। फिल्म के हिट हो जाने के बाद यह इलाका सिप्पी नगर कहलाने लगा।
59.अमिताभ बच्चन के एक इंटरव्यू के अनुसार शूटिंग के स्थान पर रमेश सिप्पी ने सभी आर्टिस्टों के लिए छोटी छोटी कुटिया बनवा दी थी। शूटिंग के दौरान सभी आर्टिस्ट अपनी कुटिया में तैयार होते थे और रात को शूटिंग के बाद वापस बंगलौर होटल में आ जाते थे।
60.फिल्म में वीरू का किरदार निभा रहे धर्मेंद्र तो कई बार बंगलौर स्थित होटल जाने की बजाय रामनगर के बीच बने आर्टिफिशियल चबूतरे पर ही रात में सो जाते थे।
61.फिल्म का एक सीन जिसमे धर्मेंद्र पानी की टंकी पर चढ़ जाते हैं, फिल्माने के लिए दो टंकियां बनाई गई थी। इस समय लोकेशन पर क्रेन उपलब्ध नहीं हो पाती थी, इसलिए ऊँची टंकी पर धर्मेंद्र के क्लोज शॉट लेना मुमकिन नहीं था। इसके लिए वह एक कम ऊंचाई की टंकी बना के धर्मेंद्र के क्लोज शॉट्स लिए गए।
अमिताभ और धर्मेंद्र का बंगलौर से रामनगर तक का सफर
62.अमिताभ के अनुसार रमेश सिप्पी ने सभी आर्टिस्टों को अलग अलग गाड़ियां बैंगलोर स्थित होटल से शूटिंग स्थल तक आने के लिए दे रखी थी। अमिताभ और धर्मेंद्र ने अलग अलग आने की बजाय एक ही गाडी से आना शुरू किया और रास्ते में दोनों ताश खेलते हुए आते।
63.एक दिन दोनों जब एक ही गाड़ी से आ रहे थे, तो बंगलौर के बीच में गाड़ी खराब हो गई। कुछ लोगों ने धर्मेंद्र को पहचान लिया और देखते ही देखते भीड़ इकठ्ठी हो गई। दोनों ने वहाँ से दौड़ लगाई और जो ऑटो पहले दिखा उसमे सवार होकर रामनगर की तरफ भाग निकले।
ट्रैन की डकैती वाले सीन की शूटिंग – Train Robbery Scene in Sholay
64.फिल्म की ट्रैन डकैती वाली सीकवेंस की शूटिंग के लिए विदेशी टेकनीशियन्स बुलवाये गए थे।
65.मुंबई पूना रूट पर इस सीन की शूटिंग के लिए रेलवे ट्रैक के आस पास का इलाका साफ़ करवाना था, ताकि कोई अभी शूटिंग में काम आने वाली मशीने इससे टकरा कर खराब नहीं हो जाये। इसके लिए आस पास के गाँव वालों को बुलाकर एरिया की सफाई करवाई गई।
66.कुछ गाँव वाले उस समय शूटिंग की यूनिट से नाराज हो गए, जब प्रोडक्शन वालों ने उन्हें काम नहीं दिया। असल में पैसे और अच्छे खाने के लालच में जरुरत से ज्यादा गाँव वाले वाले वह पहुँचने लगे थे, लेकिन जब उन्हें बिना काम दिए वापस लौटा दिया गया तो कुछ लोग नाराज हो गए। वे अक्सर रात में वहाँ से शूटिंग के काम आने वाली जरुरी चीज़े उठा ले जाते और सुबह यूनिट के वहाँ पहुंचने पर शूटिंग शुरू करने में दिक्कत आने लगती।
67.एक बार असिस्टेंट डायरेक्टर G Melon की जीप के आगे जान बूझकर कुछ गांव वालों ने गाये दौड़ा दी। एक गाय जीप की टक्कर से घायल हो गई और लोगों ने Melon को घेर लिया। आखिरी में बहुत सा पैसा देने के बात मामला शांत हुआ।
68.ट्रैन डकैती वाले सीन की शूटिंग में घोड़ों को ट्रैन के साथ दौड़ाने में बहुत दिक्कत आ रही थी। ट्रैन के इंजिन की आवाज सुनते ही घोड़े दौड़ना बंद कर देते या फिर ट्रैन से आगे निकल जाते।
69.एक सीन में ट्रैन की टक्कर से लकड़ियोँ के अवरोधों को उड़ाने वाले सीन के लिए ट्रैन को 6 किमी पीछे ले जाकर दौड़ाया गया ताकि ट्रैन फुल स्पीड से लकड़ियोँ को टक्कर मार सके। इस सीन को तीन कैमरे लगा कर शूट किया गया। कैमरामैन के चेहरे के आस पास से लकड़ियां उड़ती हुई निकली, लेकिन अपने आप को जोखिम में डाल कर भी कैमरामैन ने सीन शूट कर लिया।
शोले के कुछ और शानदार किस्से
70.एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमिताभ द्वारा शेयर किये गए कुछ किस्सों के अनुसार शूटिंग में घोड़ों को गिरते हुए दिखने के लिए कुछ खड्डे खोद दिए जाते थे। खड्डों को मुलायम मिटटी से पाट कर ऊपर घास बिछा दी जाती थी, ताकि घोड़ों को अंदाजा न हो सके कि आगे खड्डे हो सकते हैं। शूटिंग के दौरान जब घोड़े उस स्थान से निकलते तो गिर जाते थे।
71.शूटिंग के दौरान अमजद खान और अमिताभ पहली ही दिन से अच्छे दोस्त बन गए थे। अमजद खान अमिताभ को प्यार से शॉर्टी कह के बुलाते थे।
72.शूटिंग के दौरान दोनों को साथ देखकर अक्सर यूनिट के लोग बोला करते थे कि देखो लम्बाई और चौड़ाई साथ जा रहे हैं।
73.फिल्म के कई एक्शन सीक्वेंस को काटना पड़ा क्योँकि इस दौरान इमर्जेंसी लग गई थी और नए नियमों के अनुसार एक्शन सीन की लम्बाई पूरी फिल्म में 90 मिनट्स से अधिक नहीं हो सकती थी।
74.फिल्म रिलीज़ से कुछ दिन पहले कस्टम में अटक गई। असल में फिल्म प्रिंट होने के लिए विदेश गई थी क्योंकि भारत में तब तक 70 MM तकनीक आई नहीं थी। इसी देरी की वजह से फिल्म शुरू में 35 MM पर रिलीज़ की गई और फिल्म उस भव्य रूप में दर्शकों के सामने नहीं जा पाई, जिस रूप में शूट की गई थी। हालांकि दिनों के बाद प्रिंट कस्टम से छूट गए और फिल्म 70 MM के साथ प्रदर्शित हो गई।
75.शुरुआत में फिल्म केवल 250 प्रिंट्स के साथ रिलीज़ हुई थी।
76.ऐसा कहा जाता है कि एक सीन की शूटिंग के लिए हेलीकाप्टर की मदद ली गई ताकि तेज हवा का बहाव बनाया जा सके और गब्बर के द्वारा ठाकुर के परिवार की हत्या के बाद लाशों के चेहरे से तेज हवा के द्वारा कफन हटने वाला सीन शूट किया जा सके।
77.फिल्म में एक किरदार ऐसा भी था जिसके तीन शब्द फिल्म इतिहास में अमर हो गए। मैकमोहन द्वारा निभाए गए सांभा का डायलॉग “पूरे पचास हजार” सभी के जेहन में आज भी है।
78.जब मैकमोहन शूटिंग के लिए चट्टान पर चढ़ते थे तो अमजद उन्हें चिढ़ाने के लिए नीचे से सीढ़ी हटा दिया करते थे।
79.बसंती को डाकुओं से बच कर तांगे के साथ भागने वाले सीन को उनकी बॉडी डबल रेशमा पठान पर फिल्माया गया था। जब तांगे का पहियाँ टूटा तो रेशमा को भी इससे चोट लग गई थी। रेशमा पठान ने हेमा मालिनी सहित कही अन्य हीरोइनों के लिए बॉडी डबल का काम किया है।
80.फिल्म के सिनेमेटोग्राफर द्वारका दिवेचा शूटिंग के सारी तैयारियां हो जाने पर कलाकारों को उनकी कुटिया से बाहर निकालने और सेट पर पहुंचने के लिए भोंपू बजाकर सेट पर आने का संकेत दिया करते थे।
अमिताभ हो सकते थे असली गोली से घायल
81.फिल्म के एक सीन में जब जय गब्बर के अड्डे पर पहुँच कर वीरू और बसंती को बचाता है, तब वीरू यानि धर्मेंद्र लात मार कर कारतूस के डिब्बे को खोलने की कोशिश करते हैं। कुछ आर्टिकल्स में ऐसा बताया गया है कि इस सीन की शूटिंग के टाइम धर्मेंद्र ने शराब पी रखी थी। जब बार बार लात मारने पर भी डिब्बा नहीं खुला तो वे गुस्से में गोलियां बन्दूक में भर के हवा में फायर करने लगे। शूटिंग के दौरान कुछ सीन्स के लिए असली बंदूके और हथियार काम में लिए गए थे। जब उन्होंने हवा में फायर किया तो गोली ऊपर चट्टान पर खड़े अमिताभ के पास से निकल गई। कहते हैं कि शूटिंग तुरंत रोक दी गई और होश में आने के बाद धर्मेंद्र ने अमिताभ और रमेश सिप्पी से इसके लिए माफ़ी मांगी।
फिल्म के म्यूजिक जुड़े कुछ किस्से – Sholay Music
82.शोले के सुपरहिट म्यूजिक के अलावा इसके डायलॉग्स भी बहुत पॉपुलर हुए थे। फिल्म की रिलीज़ के कुछ समय के बाद इसके डायलॉग्स की रिकार्ड्स भी रिलीज़ किये गए और देखते ही देखते 1979 तक 5 लाख से ज्यादा रिकार्ड्स बिक गए।
83.महबूबा ओ महबूबा गाना पहले आशा भोंसले गाने वाली थी। जब उनके पति और फिल्म के म्यूजिक डायरेक्टर आर डी बर्मन ने उन्हें गाना गाकर सुनाया तो आशा ने कहा कि यह गाना उनकी आवाज में बहुत अच्छा लग रहा हैं। इस पर बर्मन ने गाना गाने का फैसला किया और फिल्म में शूटिंग के लिए हेलन के साथ साथ जलाल आगा को भी कास्ट किया गया।
84.इस समय हेलन अपने कैरियर के मुश्किल दौर से गुजर रही थी। सलीम ने उन्हें मदद करते हुए इस महबूबा ओ महबूबा में काम दिलवाया।
सलीम-जावेद द्वारा सुनाये गए कुछ किस्से – Salim Jawed in Sholay
85.सलीम जावेद ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि वे एक ऐसे व्यक्ति से मिले जो गब्बर से सहानुभूति रखता था और बाकि किरदारों को गब्बर को परेशान करने का जिम्मेदार मानता था। उस आदमी के अनुसार ठाकुर ने कितनी बेरहमी से बेचारे गब्बर का गला पकड़ा, इसीलिए उसे गुस्सा आ गया। ऐसे ही जय वीरू बार बार बेचारे गब्बर को परेशान करने के लिए उसके अड्डे पर पहुंचने की कोशिश कर रहे थे।
86.फिल्म के रिलीज़ होने के कुछ सालों के बाद सिप्पी फिल्म्स ने एक पार्टी का आयोजन किया और सलीम जावेद को भी इसमें निमंत्रित किया। इस पार्टी में सिप्पी फिल्म्स की आर्मी के प्रमुख सदस्य रमेश सिप्पी को नहीं बुलाया गया था। सलीम जावेद के अनुसार जब उन्हें पता चला कि रमेश सिप्पी को इस पार्टी में शामिल नहीं किया गया तो वे दोनों भी नहीं गए। उन्हें लगा कि हो सकता हैं प्रोडक्शन हाउस शोले के सिक़्वल की घोषणा करने वाला हो। ऐसे में शोले को लेकर सलीम जावेद की लॉयल्टी रमेश सिप्पी के लिए है।
87.सलीम बताते हैं कि फिल्म को लेकर लोगों में पागलपन कुछ इतना था कि वे एक ऐसे आदमी से मिले, जो रोज रात को फिल्म के डायलॉग्स का ऑडियो चला कर के सोता था।
88.फिल्म के एक सीन में जय बसंती की मौसी के पास वीरू का रिश्ता लेकर जाते हैं। इस सीन को धर्मेंद्र के सुझावों के बाद सलीम जावेद ने कुछ बदलावों के साथ फिर से लिखा था।
89.सलीम जावेद बताते हैं कि पहले फिल्म के लेखकों को अपनी फीस पाने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती थी। यहाँ तक कि खुद ही के पैसे लेने के लिए माफ़ी मांगते हुए कुछ बहाना बनाना पड़ता था। न तो उन्हें ढंग से फिल्म का क्रेडिट मिलता था नहीं था न ही फीस। शोले के बाद लेखकों की इज़्ज़त होनी शुरू हुई।
शोले का 3D वर्जन – Sholay in 3D
90.वर्ष 2014 में फिल्म को 3D में रिलीज़ किया गया, जिस पर करीब 250 करोड़ रूपये का खर्चा आया।
91.फिल्म का 3D वर्सन 1000 स्क्रीन्स पर पूरी दुनिया में एक साथ रिलीज़ हुआ।
92.कमाई के मामले में शोले का 3D वर्सन पीछे रह गया और केवल 100 करोड़ रूपये ही कमा सका यानि की अपनी लागत भी नहीं निकाल सका।
शोले से जुडी कुछ अन्य रोचक जानकारियां
93.शोले से पहले की फिल्मों में डाकुओं को पगड़ी और धोती कुर्ता पहने दिखाया जाता था, लेकिन इस फिल्म में डाकू को सेना की वर्दी जैसी कमीज पहने दिखाया गया। इस वर्दी को मुंबई के चोर बाजार से ख़रीदा गया था और पूरे शूटिंग के दौरान इसे एक भी बार धोया नहीं गया।
94.इमाम के बेटे अहमद का रोल निभाने के लिए सचिन पिलगांवकर को फीस के रूप में रेफ्रीजिरेटर दिया गया था।
95.फिल्म का हर कलाकार आज भी अपने द्वारा निभाए गए किरदार के नाम से जाना जाता है, चाहे वो गब्बर, सांभा, बसंती, कालिया, सूरमा भोपाली और अंग्रेज के ज़माने का जेलर हो। यहाँ तक की लोगों ने अपने ऑटो रिक्शा और ताँगों का नाम धन्नो तक रख दिया।
96.यह फिल्म 1954 में रिलीज हुई जापानी निर्देशक अकीरा कुरोसावा की फिल्म ‘सेवन समुराई’ से प्रभावित है। इसमें एक गांव के लोग डाकुओं के आतंक से परेशान होकर सात समुराई को अपने गांव की रक्षा की जिम्मेदारी देते हैं।
97.हेमा मालिनी भी अपने लिए चुने गए रोल से खुश नहीं थी। उन्हें लगता था कि तांगे वाली के रोल में उन्हें कोई पसंद नहीं करेगा, लेकिन रमेश सिप्पी ने उन्हें मना लिया।
98.फिल्म को लेकर कई कॉमेडियन ने स्टैंडअप कॉमेडी स्क्रिप्ट्स तैयार की हैं। इनमे से राजू श्रीवास्तव द्वारा एक कॉमेडी शो में की गई कॉमेडी बहुत ज्यादा पसंद की गई थी। राजू इसमें गाँव के इस लड़के की भाषा में शोले देखने के बाद अपना अनुभव दोस्तों से शेयर करते है।
99.फिल्म को कुछ सीन्स पर मजाक भी बनाया गया है। कुछ ऐसी बातें बताई गई है जो हास्यास्पद है और एक दूसरे से मेल नहीं खाती, जैसे फिल्म में दिखाया गया है कि गाँव में बिजली नहीं थी, तो जिस टंकी पर धर्मेंद्र चढ़ते हैं, उस पर पानी कैसे चढ़ाया जाता होगा।
100.राम गोपाल वर्मा ने 2007 में अमिताभ को लेकर शोले की रीमेक को आग के नाम से बनाया, जो बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह फ्लॉप रही ।
101.फिल्म की पॉपुलैरिटी इतनी अधिक है कि अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प भी ने भी अपनी भारत यात्रा के दौरान शोले का जिक्र किया।
शोले भारतीय सिनेमा के का वो महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जिसके जिक्र बिना भारतीय सिनेमा का इतिहास अधूरा है। अगर आपको ये पोस्ट पसंद आया है, तो कमेंट पोस्ट करके हमें जरूर बताएं।
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Very nice
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