1960 के दशक में स्वर कोकिला लता मंगेशकर अपने कॅरियर के चरम पर थीं। पर शायद कोई था, जो शायद उनकी मधुर आवाज को हमेशा के लिए ख़त्म कर देना चाहते था। 

एक दिन लता जी रोज की तरह सुबह उठी तो उन्हें कुछ बैचेनी हुई। उन्हें कमजोरी महसूस हुई और हरे रंग की उल्टियां करते हुए बेहोश हो गईं। 

डॉक्टर ने बताया कि लता जी को स्लो पॉइज़न यानी धीमा जहर दिया जा रहा था, जो धीरे धीरे  उन्हें मौत के करीब ले जा रहा था।

जैसे ही लता जी बीमार हुई, उनका रसोइया घर से भाग गया। उसने भागने की जल्दी में अपना बकाया पेमेंट तक नहीं लिया। 

इसके बाद लता जी की बहन Usha Mangeshkar ने तुरंत यह निर्णय लिया कि अब से लता जी का खाना वे स्वयं बनाएंगी।   लता जी की लगा की अब वे कभी नहीं गा पाएंगी। 

लता जी अगले तीन महीनों तक बेड रेस्ट पर रहीं और एक भी गाना रिकॉर्ड नहीं कर पाई। लता जी ने एक बार बताया कि उन्हें लगता था कि वे अब कभी नहीं गा पाएंगी।

लता जी के दोस्त और मशहूर गीतकार मज़रूह सुल्तानपुरी ने ऐसे समय में उनका साथ दिया। वे प्रतिदिन काम खत्म करके लता जी के पास आते। 

मज़रूह  किस्से, कहानियां और कविताएं सुनाते। उनका ख्याल रखते और लता जी को दिया जाने वाला सादा खाना उनके साथ खाते। एक सच्चे दोस्त के प्रयासों से लता जी समय से पहले ठीक हो गईं।

ठीक होने के बाद लता मंगेशकर ने  पहला गीत रिकॉर्ड किया। गीत के बोल थे, 'कहीं दीप जले कहीं दिल ' । गीत सुपरहिट हुआ