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Vadh 2022: रोंगटे खड़े कर देगी संजय मिश्रा और नीना गुप्ता की जबरदस्त एक्टिंग | Vadh Review, Story and Star Cast in Hindi

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वध स्टार कास्ट एंड क्रू Vadh Star Cast

  • कलाकार: संजय मिश्रा (Sanjay Mishra), नीना गुप्ता (Neena Gupta), सौरभ सचदेवा (Saurabh Sachdeva), मानव विज (Manav Vij), दिवाकर कुमार (Diwakar Kumar)
  • निर्देशक: जसपाल सिंह संधू, राजीव बरनवाल
  • निर्माता: अंकुर गर्ग, लव रंजन, नीरज रुहिल, निम्फिया सराफ संधू, सुभाष शर्मा

वध की कहानी Vadh ki Story in Hindi

Vadh Review शंभुनाथ मिश्रा ग्वालियर के एक रिटायर स्कूल शिक्षक हैं, जो अपने बेटे को शिक्षित करने और विदेश में बसने में मदद करने के लिए एक स्थानीय गुंडे साहूकार प्रजापति पांडे से पैसे उधार लेते हैं। प्रजापति जब भी वसूली के लिए शम्भुनाथ के घर आता, उनके घर में बैठ कर मांस और शराब का सेवन करता। कर्जे के बोझ तले दबे ब्राह्मण दंपत्ति उसे रोक भी नहीं पाते।

इतना ही नहीं, प्रजापति उनके घर लड़कियों को भी लाता और अय्याशी करता। दूसरी और उनका बेटा विदेश में बसने के बाद माँ बाप की उपेक्षा करने लगता है और उनकी कोई मदद नहीं करता। एक दिन शंभुनाथ के सब्र का बाँध टूट जाता है और वह प्रजापति का मर्डर कर देता है।

इस घटना को वो इतना फूलप्रूफ तरीके से अंजाम देता है कि पुलिस वाला उस तक नहीं पहुँच सकता था। शंभुनाथ का मानना था कि प्रजापति इंसान नहीं, असुर था और असुरों का क़त्ल बल्कि वध किया जाता है। इसलिए उसने कुछ गलत काम नहीं किया।

उसकी मुसीबत तब बढ़ जाती है, जब एक स्थानीय नेता और पुलिस वाला प्रजापति की तलाश में लग जाते हैं। पुलिस शंभुनाथ के फूलप्रूफ प्लान को क्रैक कर पाती है या नहीं, इसी पर पूरी कहानी आधारित है।

वध फिल्म की समीक्षा Vadh Review in Hindi

पहली नज़र में वध को को देखकर ऐसा लगता है कि यह बागबान के रास्ते जा सकती है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और ये फिल्म और ही लेकर आयी है। क्या एक आदर्श अपराध जैसी कोई चीज होती है और क्या केवल एक अनुभवी अपराधी ही चतुराई से सबूत छिपा सकता है? वध में इसी धारणा को तोडा गया है।

इस थ्रिलर में अपराधी एक हम्बल, हेल्पलेस और रिटायर शिक्षक शंभुनाथ मिश्रा (संजय मिश्रा) है, जो कर्ज चुकाने के दौरान गुज़ारा करने की कोशिश कर रहा है। साहूकार, प्रजापति पांडे (सुमित सचदेवा) शुद्ध शाकाहारी परिवार के घर का उपयोग शराब पीने, मांस खाने और महिलाओं के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए करता है। शंभुनाथ और उसकी पत्नी मंजू (नीना गुप्ता) को उसके बाद सफाई करने के लिए छोड़ देता है।

निर्देशक-लेखक जोड़ी जसपाल सिंह संधू (जो एक कैमियो में भी दिखे हैं) और राजीव बरनवाल की आउटिंग छोटे शहर, स्लाइस-ऑफ-लाइफ सिनेमा और नुकीले थ्रिलर के बीच एक दिलचस्प क्रॉसओवर है। मिश्रा दंपत्ति की दुनिया और संघर्ष काफी अच्छे से दिखाया हैं। संजय मिश्रा और नीना गुप्ता कीएक्टिंग दमदार है।

सौरभ सचदेवा आतंक पैदा करते हैं और अपनी भूमिका अच्छे रूप से निभाते हैं। मानव विज का शक्ति सिंह एक पेचीदा किरदार है, जो भ्रष्ट तो है पर पूरी तरह दुष्ट नहीं है।ग्वालियर की गलियों से लेकर बड़े-बड़े किलों और ऐतिहासिक जगहों तक सपन नरूला की सिनेमैटोग्राफी काबिले तारीफ है, साथ ही बैकग्राउंड म्यूजिक भी।

वध किसी भी तरह से खींची हुई नहीं लगती है। प्री-इंटरवल वाले हिस्से में काफी ‘शॉक वैल्यू’ होती है और यह सेकंड हाफ के लिए स्टेज सेट करने में कामयाब होता है । इसी तरह अंत की ओर एक ट्विस्ट है, जो फिल्म के डायनामिक्स को आजमाता है। संजय मिश्रा हमेशा की तरह आसानी से अपने किरदार में घुस जाते है और फिट बैठे हैं।

दूसरे भाग में वह शंभूनाथ के असली इरादों को छुपाने के लिए अपनी आंखों का इस्तेमाल करते है। वह एक दिल दहला देने वाले दृश्य में अपनी वल्नरेबल साइड को भी दिखाते है जिसमें गुंडों द्वारा उन्हें पीटा जाता है।

नीना गुप्ता भी संजय मिश्रा के साथ बिलकुल फिट बैठी है। वह एक दृश्य में अपने सबसे अच्छे रूप में है, जहां वह ‘पाप हो गया’ का नारा लगाती है। नीना गुप्ता हमेशा की तरह परफेक्ट लगती है और इस सीन की सच्चाई देख यह महसूस होता है कि वह एक बड़ी भूमिका की हकदार है।

सौरभ सचदेवा और मानव विज ने वन डायमेंशनल किरदारों के बोझ के बावजूद अपना बेस्ट प्रदर्शन किया है। संगीत की कोई गुंजाइश नहीं है। वध के निर्माता ने फिल्म को सीरियस ही रखा है, इसलिए बेवजह के म्यूजिक फिल्म में नहीं भरे हुए है। बैकग्राउंड स्कोर कुछ पॉइंट के बाद बहुत कॉमन लगता है, जो एक थ्रिलर के लिए एक मुख्य कल्प्रिट है। अन्य तकनीकी पहलू, जैसे डायलॉग और सिनेमेटोग्राफी अच्छे हैं लेकिन वास्तव में असाधारण नहीं हैं।

लेकिन फिल्म का आधा हिस्सा एक हिंदी पल्प उपन्यास से बाहर लगता है, जिसमें एक विनम्र व्यक्ति को एक चौंकाने वाला रहस्य छिपाने के लिए कहा जाता है। फिल्म के कुछ हिस्से थोड़े सुस्त हो जाते हैं। लगभग ऐसा महसूस होता है जैसे वे समाचारों की सुर्खियों से अलग हो गए हैं। कहानी दर्शकों को बांधे रखती है। ओवरआल फिल्म आपको सीट से हिलने नहीं देगी।

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