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Qala Review: जगन के रोल में छा गए इरफ़ान खान के बेटे बाबिल

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Qala Review एक ऐसे इंडस्ट्री में जहां कहानीकार आमतौर पर अपने नायक के दिमाग पर बातचीत करने से बचते हैं, लेखक-निर्देशक अन्विता दत्ता एक Exception हैं। डरावनी बुलबुल के बाद, वह एक कोयल जैसी लड़की के दिमाग की एक संगीतमय खोज बुनती है, जो महत्वाकांक्षा और कौशल के बीच, उम्मीदों और वास्तविकता के बीच फंसी हुई है।

‘कला’ की स्टार कास्ट Qala Star Cast and Crew

  • कास्ट: तृप्ति डिमरी (Tripti Dimri), स्वास्तिका मुखर्जी (Swastika Mukharjee), बाबिल खान (Babil Khan), अमित सियाल (Amit Sial), नीर राव, अविनाश राज शर्मा, आशीष सिंह
  • निर्देशक: अन्विता दत्त
  • लेखक: अन्विता दत्त
  • निर्माता: कर्णेश शर्मा

‘कला’ की स्टोरी ‘Qala’ Story in Hindi

फिल्म की कहानी को 1940 के कोलकाता मे सेट किया गया है, जहाँ की फिल्म इंडस्ट्री मे एक गायिका की एंट्री होती है। गायिका की आवाज कोयल से मधुर है। वो अपने गानों से कानों मे मिश्री घोल देती है। हर कोई इस सिंगर का दीवाना हो जाता है। फिल्म निर्माताओं की लाइन इस सिंगर के आगे लगी रहती है।

लगातार मिल रही सफलता के प्रभाव मे आकर यह सिंगर खुद को सबसे उपर समझने लगती है और अन्य गायको की फीस अपने हिसाब से तय करती है। लेकिन इसी बीच कहानी मे जगन नाम के एक रहस्यमयी सिंगर की एंट्री होती है। जगन अपनी आवाज से उसे रिप्लेस कर देता है। इसके बाद उस गायिका की जिंदगी कशमकश मे गुजरने लगती है और फिर वह दिमागी रूप से बीमार हो जाती है। अब आगे कहानी मे जो होता है वो देखने लायक है।

‘कला’ रिव्यु Qala Review in Hindi

कला (तृप्ति डिमरी Tripti Dimri) हिमाचल की एक लड़की के रूप में शास्त्रीय गायकों के अपने शानदार परिवार की प्रतिष्ठा और प्रतिभा को जीने के लिए उत्सुक है। “नाम के आगे पंडित होना चाहिए, नाम के पीछे बाई नहीं”, उनकी मां (स्वास्तिका मुखर्जी Swastika Mukharjee) यह बोलते हुए एक्सपेक्टेशन सेटिंग करती है। प्रभावशाली बेटी अपनी टास्कमास्टर मां का दिल जीतना चाहती है।

हालांकि मां जगन (बाबिल Babil Khan) की आवाज से मोहित हैं। वह उसे माँ-बेटे का स्नेह देती है और उसे (एक बाहरी व्यक्ति को) अपने परिवार की विरासत के योग्य उत्तराधिकारी के रूप में चुनती है। कला को सलाह दी जाती है कि वह फिल्म संगीत में करियर बनाने के बजाय शादी कर लें और अपने पति के साथ रहें, क्योंकि उन दिनों यह सम्मानित महिलाओं के लिए जगह नहीं थी।

कला इसे महिलाओं के साथ होने वाले अनुचित व्यवहार के मामले के रूप में देखती है। उसे लगता है कि उसकी मां ने उस पर ध्यान नहीं दिया है, जबकि मां अपनी बेटी की बेचैनी को देखती है और दृढ़ता से मानती है कि जगन को उत्तराधिकारी बनाना ही उचित है जो अधिक प्रतिभाशाली है। कला अपने सपने को पूरा करने के लिए गलत तरीकों का सहारा लेती है, लेकिन इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। वह अपने अतीत से बुरी तरह डरती है।

जैसे-जैसे यह आगे बढ़ती है, अतीत और वर्तमान, पछतावे और क्रोध, प्रेम और ईर्ष्या के बीच घूमते हुए यह कहानी धीरे-धीरे रहस्यों का पिटारा खोलती है। ये माँ बेटी के बीच के तनाव को दिखाता है और एक इमोशनल हॉरर की तरफ फिल्म को ले जाता है। अन्विता दत्त की कहानी कहने और लिखने की सुंदरता इसे और ज्यादा देखने लायक बनाती है।

अमित त्रिवेदी का शास्त्रीय संगीत फिल्म के केंद्र में है और कहानी को आगे ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अन्विता के अलावा, गीतों को अमिताभ भट्टाचार्य, कौसर मुनीर, स्वानंद किरकिरे और वरुण ग्रोवर ने खूबसूरती से लिखा है। गायक सिरीशा भगवतुला और शाहिद माल्या, जिन्होंने प्रमुख पात्रों के लिए गाया है, ने अच्छा काम किया है।

रोचकता बनाए रखने के लिए सीन में लाइट का अच्छा यूज़ किया गया है। कला का पहाड़ों में बचपन का घर और कोलकाता में उनकी एडल्ट लाइफ, सेट डिजाइन, वेशभूषा और रंग पैलेट आकर्षक हैं। सिद्धार्थ दीवान (सिनेमैटोग्राफी) और मीनल अग्रवाल (प्रोडक्शन डिज़ाइनर) ने एक ऐसी दुनिया बनाई जो जितनी सुन्दर है उतनी ही दिल दुखाने वाली। जब की कई जगह पर गाने थोड़े ठन्डे महसूस होते है।

तीनों प्रमुख कलाकार खुद को प्यार, जेल्सी और धोखे की दुनिया में ले जाते हैं। तृप्ति डिमरी रेट्रो अवतार में बहुत खूबसूरत हैं और कुछ हिस्सों में प्रभावी हैं, लेकिन उनके एक्सप्रेशन लिमिटेड सीमित हैं। सुंदर स्वास्तिका मुखर्जी मां के रूप में बिल्कुल सटीक और शक्तिशाली हैं। बाबिल ने अपना किरदार ख़ूबसूरती से निभाया और अपने पिता की एक झलक दिखाई। बाबिल दिवंगत अभिनेता इरफ़ान खान के बेटे हैं।

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