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‘गुडबाय’ मृत्यु से जुड़े रिवाज़, आस्था या अंधविश्वास ? Goodbye Review, Story, Star Cast in Hindi

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गुडबाय की स्टार कास्ट Goodbye star cast

  • निर्देशक: विकास बहल Vikas Bahal
  • स्टार कास्ट: अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan), रश्मिका मंदाना (Rashmika Mandanna), सुनील ग्रोवर (Sunil Grover), नीना गुप्ता (Neena Gupta), पवैल गुलाटी (Pavail Gulati)

गुडबाय की कहानी हिंदी में Goodbye Story in Hindi

Goodbye Review फिल्म की कहानी है अंतिम संस्कार से जुड़े रीति रिवाजों पर। फिल्म में बताया गया है कि कैसे आज की युवा पीढ़ी अपने रीति रिवाजों और अपने माता -पिता से दूर होती जा रही है। तारा (रश्मिका मंदाना) अपने जीवन का पहला केस जीतने की खुशी में पार्टी कर रही होती है। वहीं उसके पिता हरीश भल्ला (अमिताभ बच्चन) उसे कॉल करते हैं लेकिन वो नहीं उठाती।

सुबह जब उसका नशा उतर जाता है, तब उसे पता चलता है कि उसकी मां गायत्री (नीना गुप्ता) का देहांत हो चुका है। जिसके बाद तारा को काफ़ी शॉक लगता है। परिवार का बड़ा बेटा अंगद और गोद लिया हुआ बेटा करण, दोनों विदेश में रहते हैं और खबर मिलते ही वापस आने लगते हैं। सबसे छोटा बेटा पहाड़ चढ़ने गया होता है और उसे मां की मृत्यु के बारे में पता नहीं चल पाता। हरीश भल्ला अपनी पत्नी की बातें याद करता है कि जब गायत्री थी, तब वही सबको बांध कर रखा करती थी।

गायत्री के सभी बच्चे अपनी माँ से बहुत अटैच्ड थे, लेकिन उन्हें खासकर बेटी तारा को अंतिम संस्कार के रीति रिवाज पसंद नहीं आते। उसे लगता है कि इन सब क्रियाओं का कोई लॉजिक नहीं है। जब सभी लोग अस्थियां प्रवाहित करने हरिद्वार जाते हैं, तो वहां इनकी मुलाकात पंडित जी (सुनील ग्रोवर) से होती है।

पंडित इन्हे समझाता है कि अगर कोई बात समझ में नहीं आये तो इसका मतलब यह नहीं है कि वो बात गलत है। धीरे धीरे सभी बच्चे समझने लगते हैं कि भाग दौड़ वाली जिंदगी में कुछ पल रुक कर रिश्तों को संभालना भी जरुरी होता है। यही बात उनकी मां भी उन्हें समझाना चाहती थी।

गुडबाय का रिव्यू Goodbye Review in Hindi

विकास बहल के निर्देशन में बनी ये फिल्म एक ऐसे विषय पर आधारित है, जो कि हर किसी के लिए दुख का विषय है। ये जीवन की सच्चाई है, लेकिन फिर भी किसी करीबी के जाने का दुख हल्का नहीं होता। मृत्यु पर आधारित ये फिल्म काफी इमोशनल जरूर है, लेकिन ये आपको भारी महसूस नही होने देती है।

कई जगह फिल्म में सिचुएशनल ह्यूमर पैदा किया गया है, जो की देखने में काफी अच्छा लगता है। इस फिल्म में किसी की मृत्यु के बाद होने वाले सारे रस्मों और रिवाजों पर भी अच्छी तरह से रोशनी डाली गयी है। हालांकि फिल्म में कई सीन्स थोड़े लंबे जरूर लगते हैं।

बात करें सभी की एक्टिंग की, तो सबने अपने किरदार को अच्छी तरह से निभाया है। अमिताभ बच्चन ने हरीश भल्ला के किरदार को अच्छी तरह से परदे पर उतारा है। रश्मिका मंदाना की एक्टिंग भी अच्छी है, हालांकि उनका एक्सेंट एक पंजाबी परिवार के लिए थोड़ा ठीक नहीं लगता।

नीना गुप्ता और सुनील ग्रोवर का स्क्रिन टाइम थोड़ा कम जरूर है लेकिन उन्होंने अपना रोल अच्छे से निभाया है। सुनील ग्रोवर ने एक पंडित का रोल किया है जो अंतिम संस्कार और उससे जुड़े सभी चीजों को अच्छी तरह से बताते हैं। वहीं बात करे अन्य एक्टर्स की तो उन्होंने भी अपना रोल अच्छे से निभाया है।

फिल्म की एडिटिंग थोड़ी और अच्छी की जा सकती थी। इस मूवी में एक और जो नेगेटिव प्वाइंट है, वो ये है कि कई जगह चीजे रियल लाइफ से कनेक्ट नहीं कर पाती। इस फिल्म की कहानी भी नई नहीं है। ऐसी फिल्में पहले भी परदे पर हमे देखने को मिल चुकी है। कुल मिला कर ये फिल्म वन टाइम वॉच हो सकती है।

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