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Arzoo 1965

‘आरजू’ : फिल्म की कहानी, किरदार और इससे जुडी कुछ ख़ास बातें – Arzoo 1965 Story, Cast, Music and Review in Hindi

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1965 में रिलीज हुई फिल्म आरजू एक सुपरहिट फिल्म साबित हुई। यह फिल्म दो दोस्तों के त्याग, नायक के बलिदान और नायिका की अपने प्रेम के प्रति समर्पण की कहानी है। फिल्म अपने मधुर संगीत और बेहतरीन कहानी की वजह से लोगो के दिल में बस गई। आइए जानते हैं फिल्म की कहानी और इससे जुड़ी कुछ रोचक बातें।

आरजू की स्टार कास्ट एंड क्रू – Arzoo 1965 Star Cast & Crew

निर्माता/निर्देशक – रामानंद सागर
संगीत निर्देशक – शंकर – जयकिशन
कहानी – रामानंद सागर
गीतकार – हसरत जयपुरी
कलाकार – राजेंद्र कुमार, फ़िरोज़ खान, साधना, महमूद, नासिर हुसैन

आरजू की कहानी – Arzoo movie 1965 story

फिल्म शुरू होती है दो जिगरी दोस्तों गोपाल और रमेश से, जो एक दूसरे पर जान छिड़कते हैं। परीक्षा में पास होने पर दोनो दोस्त कश्मीर जाने का प्रोग्राम बनाते हैं, लेकिन एन वक्त पर रमेश के पिता उसे किसी जरूरी काम के कारण जाने से रोक देते हैं। गोपाल को अकेले ही कश्मीर जाना पड़ता है।

कश्मीर में गोपाल मम्दू नाम के किरदार के हाउस बोट में रुकता है। यहां उसकी मुलाकात उषा से होती है और दोनो एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं। गोपाल स्कीइंग प्रतियोगिता में जीत जाता है, लेकिन अपना असली नाम छुपा कर वह सबको अपना नाम सरजू बताता है।

सरजू उर्फ गोपाल की उषा के साथ प्रेम कहानी आगे बढ़ती है। वहीं सरजू भेष बदल कर बूढ़े के वेश में उषा के पिता से भी दोस्ती कर लेता है। जल्दी ही वो दिन भी आता हैं जब गोपाल को वापस अपने घर आना होता है। वह उषा से वादा करता है कि जल्द लौटकर आएगा, लेकिन अपना असली नाम नही बता पाता।

जैसे ही गोपाल कश्मीर से निकलता है, रमेश अपने पिता के कहने पर खुद की शादी के लिए लड़की देखने कश्मीर पहुंचता है। यह लड़की कोई और नहीं बल्कि उषा होती है। रमेश को उषा पसंद आ जाती है।

घर वापस आते समय गोपाल की टैक्सी का एक्सीडेंट हो जाता है और इस एक्सीडेंट में गोपाल अपना एक पैर गंवा देता है। अपाहिज गोपाल इस दुर्घटना के बारे में किसी को नहीं बताता और घर वापस आ जाता है। उसे उषा की कही एक बात याद आती है कि अपाहिज होकर जीने से अच्छा मर जाना है।

गोपाल समझ जाता है कि अगर वो उषा को जिंदगी में वापस जाता है, तो उषा की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी, क्योंकि उसे एक अपाहिज के साथ जीवन बिताना पड़ेगा। उसे पता चल जाता है कि जिस लड़की से उसके दोस्त रमेश की शादी की बात चल रही है, वो उषा है। इसी विचार के साथ वो अपने प्यार को भुला देने का फैसला करता है।

इधर गोपाल के सच से अंजान उषा अपने सरजू को ढूंढती रहती है। एक बार तो उसका सामना असली सरजू से हो भी जाता है, लेकिन सरजू उर्फ गोपाल उसे पहचानने से मना कर देता है।

रमेश और उषा की शादी की बात आगे बढ़ती है और इधर गोपाल घर छोड़कर कहीं दूर जाने का फैसला करता है। फिल्म के क्लाइमैक्स में मम्दू की वजह से रमेश और उषा को गोपाल की सच्चाई का पता चल जाता है। उषा फैसला करती है कि खुद का एक पैर आरा मशीन से काट देगी और गोपाल के लायक बन जायेगी।

उषा को ऐसा करने के लिए जाता देखकर गोपाल उसके पीछे भागता है और अंत में उसे रोक लेता है। दोनो एक दूसरे के गले लग जाते हैं और इनकी प्रेम कहानी पूरी हो जाती है।

महमूद की समानांतर कहानी – Mehmood Ali as Mamdu

फिल्म में हाउस बोट वाले मम्दू का रोल महमूद ने निभाया था। महमूद भारतीय सिनेमा के पहले कॉमेडी सुपरस्टार रहे हैं। महमूद की फिल्मों की विशेषता यह होती थी कि कॉमेडियन का रोल निभाने का बावजूद पूरी फिल्म में उनकी समानांतर कहानी चलती थी। उनकी प्रेम कहानी को भी फिल्म में दिखाया जाता था।

फिल्म का संगीत- Arzoo 1965 Songs

फिल्म में कुल 7 गाने थे, जिनमें से 6 गाने मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर ने गाये थे। सभी गाने सुपरहिट साबित हुए। एक गाना “जब इश्क कहीं हो जाता है” आशा भोंसले और मुबारक बेगम ने गाया था।

फिल्म की लागत- Arzoo 1965 Cost and Income

फिल्म को बनाने में 52 लाख रूपये लगे थे और फिल्म ने 2 करोड़ रुपए की कमाई की थी

फिल्म का नाम –

पहले फिल्म का नाम ‘मंज़िल एक मुसाफिर दो’ रखा गया था, लेकिन बाद में कहानी को ध्यान में हुए नाम बदल कर आरज़ू रख दिया गया।

‘बेदर्दी बालमा तुझको’ की शूटिंग – Arzoo 1965 movie shooting location

फिल्म की अधिकतर शूटिंग कश्मीर में हुई थी। फिल्म के गीत ‘बेदर्दी बालमा तुझको’ के एक सीन की शूटिंग के लिए रामानंद सागर को 6 महीने इंतज़ार करना पड़ा। गीत में एक पंक्ति में नायिका कहती है,”फ़िज़ा के भेस में गिरते हैं अब पत्ते चिनारों से” । चिनारों से पत्ते पतझड़ के मौसम में गिरते हैं। इस सीन में पत्ते गिरते हुए दिखाना था, इसलिए रामानन्द सागर दोबारा कश्मीर पहुंचे और पतझड़ के मौसम में गाने के इस सीन की शूटिंग की।

जुबली कुमार की सुपरहिट फिल्म – Jubli Kumar

राजेंद्र कुमार को जुबली कुमार भी कहा जाता है, क्योंकि उनकी अधिकतर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर 25 सप्ताह तक लगी रहती थी और सुपरहिट हो जाती थी।

बूढ़े का गेटअप –

राजेंद्र कुमार अपनी फिल्मों में अक्सर बूढ़े का मेकअप करके कुछ हास्य पैदा करने की कोशिश करते थे। इस फिल्म में भी एक सीक्वेंस में वे बुजुर्ग के रूप में आते हैं। इस गेटअप में उन पर एक गाना “छलके तेरी आँखों से” भी फिल्माया गया था, जो कि सुपरहिट साबित हुआ।

करीना कपूर के नाना हरी शिवदासानी –

फिल्म में नायिका के अंकल ‘मेजर कपूर’ का रोल हरी शिवदासानी ने किया था। हरी सच में ‘साधना’ के अंकल (चाचा) हैं वे आज के दौर की मशहूर अभिनेत्री करीना कपूर के नाना हैं।

1965 की ब्लॉकबस्टर फिल्में –

1965 भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम दौर का वह साल रहा है जब एक से बढ़कर एक ब्लॉकबस्टर फिल्में रिलीज़ हुई थी। उस साल कुल 98 फिल्में आई, जिनमे आरज़ू चौथे नंबर पर थी। उस साल की टॉप 10 फिल्में इस प्रकार रही थी रही थी।

  1. वक्त
  2. जब जब फूल खिले
  3. गाइड
  4. आरज़ू
  5. खानदान
  6. मेरे सनम
  7. हिमालय की गोद में
  8. जानवर
  9. गुमनाम
  10. हिमालय की गोद में

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